Sunday, March 9, 2014

भूर्ण हत्या :-एक बेटी का सवाल

भूर्ण हत्या :-एक बेटी का सवाल 

माँ मुझे आने तो दो, कुछ गुनगुनाने तो दो 
मैं भी बेटे जैसा नाम करुँगी , बस एक बार 
अपनी बाँहों में लिपटकर मुस्कुराने तो दो 

माँ मैं भी पढ़ने जाउंगी ,तभी तो ''संध्या'' बन पाऊँगी 
तेरे सारे कामों को करके ,मैं राजा बेटा कहलाऊंगी 
पर माँ मुझे आने तो दो , कुछ कर गुजर जाने तो दो 
कितने वहशी जल जायेंगे ,एक बार इन नजरों को उठाने तो दो 

गोदी से उठकर जब ये नन्ही गुड़िया आँगन को आएगी 
देखते रह जाए सब इस चिडया को ये नभ मैं उड़ जायेगी 
नभ मैं रहकर भी मैं तेरा ही काम करुँगी ,कल्पना चावला 
बनकर मैं रौशन तेरा नाम करुँगी ,पर माँ मुझे आने तो दो 
ये चिडया भी चहक उठेगी ,बस एक बार खिलखिलाने तो दो 

माँ क्यों मार देते उस नन्ही बच्ची को जिसकी साँसे चलती है 
माँ मैं चीख भी नहीं पाती ,जब डॉक्टर कि कैंची चलती है 
सिर्फ एक बार माँ मुझे आने तो दो ,कई सवाल है ,इस दुनिया से 
इस गूंगी को भी अब इन बेशर्मों से कुछ जवाब अब पाने तो दो 

माँ मैं भी तो तेरी अंश हूँ ,फिर कैसे ये सब तू सह पाती है 
तेरी बेटी जो नाम करेगी ,जिन्दा ही मर जाती है /
माँ तुझसे बस एक प्रश्न है ,कब तक यूँ ही प्रथा चलाओगी 
सचमुच ये सब न बंद हुआ तो माँ तूं भी हत्यारन कहलाओगी 

(नोट-जब बेटी को कोंख में ही मार दिया जाता है ,
चिकित्सकों के अनुसार उस समय उसकी सासें चलती रहती है ,वो सारे
हरकतें करती है जो एक सामान्य बच्चा करता है ,वो भी डरती है ,वो भी खेलती है 
अतः आपसे निवेदन बंद करे भूर्ण हत्या जैसी गन्दी प्रथा को )

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